Dooriyan – Nazdeekiyan

मिलना-बिछड़ना

कहीं पहुँचने की खुशी कभी,
तो कभी कहीं से दूर जाने का गम,
ये चंद रिश्ते ही तो हैं,
जिन्हे निभाते हुए भी अक्सर,
अधूरे रह जाते हैं हम।

ज़िंदगी का ये जो दस्तूर है,
मिलना-बिछड़ना क्यूँ ,
वक़्त का फ़ितूर है,
गर तन्हाइयाँ ही लिखी तकदीर में,
फिर क्यूँ किसी से मिलना,
और मिल कर बिछड़ना भी,
हर बार इसी ज़िंदगी में
ज़रूर है।

7 February 2023

Patna Airport

by Vivek Verma

प्यार की परीक्षा

तुम से मिलने पर
लम्हें यूँ,
क्यूँ गुज़र जाते हैं?
ख़ुशी के दो पल,
हाथों से,
रेत बन कर,
क्यूँ इस कदर
पल में फिसल जाते हैं?

दिल के पास,
हो कर भी,
जो तुम नज़रों से,
इतनी दूर रहती हो,
क्यूँ नहीं ख़्वाबों में,
मुझे रोज़
बुला लिया करती हो?

तुम से रोज़ दूर रहना,
अच्छा तो नहीं लगता,
आँखों से आंसुओं के घूंट,
ज़हर की तरह पीना
अच्छा तो नहीं लगता;
पर तुम्हारे सपनों की ख़ातिर, डैडी को दिए,
चंद वचनों की ख़ातिर,
मैं दूर हो कर भी,
तुम्हे रोज़ यूँ ही चाहूँगा,
तुम्हारे चेहरे को याद कर,
रो कर भी
हर रोज़ मुस्कुराउंगा।

मुझे पता है,
तुम मुझे कितना चाहती हो,
पर तुम उन्हें भी तो,
भूल नहीं पाती हो,
उनकी कमी मैं,
पूरी तो नहीं कर सकता,
पर इस प्यार को
तुम्हारी राहों का,
एक काँटा भी
बनने नहीं दे सकता।

शायद मेरे प्यार की,
ऐसी ही कठिन परीक्षा है,
तुम्हें बेइंतहा चाह कर भी,
दूर ही रहना,
मेरे धैर्य की समीक्षा है।

18 April 2022

Mumbai

by Vivek Verma

मिलना-बिछड़ना

अच्छा नहीं लगता,
ऑफिस के बाद,
एक खाली कमरे में जाना,
और किसी अपने की कमी को,
दीवारों दरों में,
महसूस कर पाना,
और फिर इसी वाकया को,
हर रोज दोहराना।

सोमवार की सुबह हो
या शुक्रवार की शाम,
अच्छा नहीं लगता,
ऑफिस की गॉसिप या
पूरे दिन का हाल,
किसी अपने से हर रोज
शेयर न कर पाना।

तुम कब फिर मिलोगी,
इस बात की तमन्ना,
अच्छा नहीं लगता,
हर रोज
मन ही मन दोहराना।

और गर जो दिल करे,
तुम्हें कस कर
गले लगाने का,
अच्छा नहीं लगता,
इस ख्वाइश को
हर रोज
मन में ही दबाना।

22 April 2022

Autorickshaw to Malad

by Vivek Verma

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Published by Vivek Kumar Verma

Investment Banking Lawyer | Photographer & Blogger | Connoisseur of Food | Poet

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